मंगलवार हनुमान जी के भजन Lyrics | बजरंगबली के भजन लिखित में | बालाजी के भजन फिल्मी तर्ज पर Lyrics
अब लौट के आजा हनुमान
अब लौट के आजा हनुमान, तुझे भगवान बुलाते हैं ॥
गये पवनसुवन लाने संजीवन, अब तक क्यों नहीं आए हैं ।
सेनापति सुग्रीव पुकारत हैं, बानर सब ही अकुलाये हैं।
सब लोग भये विकल, तुम्हें भगवान बुलाते हैं ।
कभी तड़पते कभी बिलखते भर भर नैन प्रभु रोते हैं ।
हाय लखन अपनी माता के पुत्र अरे इक्लौते हैं ॥
प्रभु रुदन करें महान, तुम्हें भगवान बुलाते हैं ।
बीत गई सब रैन रही, अब पलभर रात बाकी है ।
देख-देख कर राह तुम्हारी, धैर न अंखिया धरती है ।
उदय न हो जाय भान तुम्हें, भगवान बुलाते हैं ॥
प्रातः समय हनुमान संजीवन ले सैन्य बीच आये।
गंगा राम धन्य बजरंगी लक्ष्मण के प्राण बचाये ।
जब जाग उठे बलवान, तब खुशी हुए भगवान ।
अब लौट के आजा हनुमान तुम्हें भगवान बुलाते हैं ॥
पाँय लागूँ ओ महाराज
पाँय लागू ओ महाराज विरद बंका ।
तुम पर वारी जाऊँ ओ महाराज विरद बंका ।
विरद बंका, गढ़ जारी लंका । पाँय०
पाँय० कौन तुमारी माता कौन पिता है ।
कौन तिहारौ नाम धरोजी हनुमन्ता । पाँय०
अन्जनी मेरी माता पवन पिता हैं ।
ब्रह्मा हमारौ नाम धरोजी हनुमन्ता । पाँय०
कौन के हुकुम से सागर लाँघ्यो ।
कौन के हुकुम से जलाई लंका । पाँय०
राम के हुकुम से सागर लाँघ्यो ।
मात पिता के हुकुम से जलाई लंका ।
पाँय० रावण मारौ अहिरावण मारौ कुम्भकरण पर भी बजायो डंका । पाँय०
तुलसीदास आस रघुबर की ।
असुरन मार मिटाई शंका । पाँय०
मेरे जीवन धन हनुमान
मेरे जीवन धन हनुमान, शरण तिहारी लई।
मैं प्राणी हूं अनजान शरण तिहारी लई ।
आफत मेरी टाल्यो जल्दी, तिहारे बिनु पीड़ा न हरती ।
दुविधा में है जान ॥ शरण० ॥
तेरे बल को पार नहीं है, बिन तेरे कोई आधार नहीं है ।
बात हठीले मान ॥ शरण० ॥
द्वार दया का खोलो जी, बजरंगी मुखड़े से बोलो जी ।
जान न वैसा स्थान ॥ शरण० ॥
कोटि कोटि चरणों में बन्दन, सङ्कट सुवन केशरी नन्दन ।
देना-देना ध्यान ॥ शरण० ॥
सियारामजी के कारज सारे, मैं भी पड़ौ तेरे दरबारे ।
ये मेरा तन मन प्राण ॥ शरण० ॥
अर्जी तेरे सम्मुख घर दीनी, काशी चरण में कर दीनी ।
सुन लो खोलकर कान ॥ शरण० ॥
माया तुम्हारी अपार
कैसी माया तुम्हारी अपार, बजरंग बाँके बली ।
नहीं पाया किसी ने पार, बजरंग बाँके बली ॥ टेक ॥
जनक सुतां को खोजन पहुंचे ऋष्यक रघुराई ।
राम और सुग्रीव मित्रता तुम हो ने करवाई ।
मिले विप्र का रूप धार ॥ कैसी० ॥
सिया सुधि लेन गये बलदाई लङ्का जाय जलाई ।।
रावण को मार विभीषण को गद्दी दिलवाई ।
लक्ष्मण मुर्छा देख पवनसुत बिगड़ी बनाई ।
संजीवनी बूटी लाने को गये आप कपिराई ।
लाये पर्वत को जड़ से उखाड़ ॥ कैसी० ॥
प्रकटे अब घाटा मेंहदीपुर में प्रबल छटा दिखलाई ।
मुल्कों में मशहूर हो गये लीला ऐसी दिखाई ।
है तुम्हारा ही बल बेशुमार ॥ कैसी० ॥
जो कोई जिस मन्सा से आते सब कुछ यहा पाते है सुख सम्पत्ति धन धान्य मिले सङ्कट कट जाते हैं।
श्री हनुमत मिल जाता सुख का सार ॥ कैसी० ॥
भूत जिन्न चन्डाल और दुष्टों के छुड़ैया ।
दुखिया लाखों ही आते द्वार ।
बांकुरे जिन्न भूत अब जावहि नहीं किसी का चारा ।
शक्ति अपार तुम्हारा है सच्चा दरबार तुम्हारा है ।।
करते इन्साफ सबका विचार ॥ कैसी० ॥
दया दृष्टि कर टेर सुनो हे हनुमन्त राम दुलारे ।
शिव प्रसाद को राख शरण में पकड़े चरण तुम्हारे ।
दीजै नैया को भव से उतार ॥ कैसी० ॥
सुनियो बजरंगी मेरी पुकार
सुनियो बजरङ्गी मेरी पुकार, सङ्कट मेरे हरो ।
लीजो चरण में मुझे बिठार, सङ्कट मेरे हरो ।।
अगम काज रघुबर के कीने, तुम नहीं दहलाये ।
बल अकूत मजबूत तुम्ही थे, रामदूत कहलाये तुम ही अञ्जनी मां के कुमार, संकट० ॥ सुनियो०
कूदं गये सौ योजन सागर, पूरे हो छल बल में ।
बाग अशोक उजाड़ा था, तब मारे निश्चर पल में ।।
तुमसे मानी थी' रावण ने हार संकट० ॥ सुनियो०
मेंहदीपुर महिमा विस्तारी जाहिर भई जगत में ।
बढ़ती कला सवाई नित मंगल होत है जंगल में ॥
क्या अनोखा है सच्चा दरबार, संकट० ॥ सुनियो०
गर्जी की अर्जी सुनकर झट मर्जी कर दीजै ।
शिव प्रसाद शरणागत की, विपदा आप हर लीजै ॥
मै दुखिया हूँ शरण तम्हार, संकट० ॥ सुनियो ०
अंजनी के कुमार
अंजनी के कुमार रघुबर के दुलार, तेरी माया का न पाया पार है।
सिया खोजने के काज पठाया तुमको ही रघुबीर ने ।
भेजी सुरसा देवी बल बुद्धि परीक्षा करने का विचार है ॥
मार्ग सुरसा मिली आनकर शतयोजन मुख फाड़कर ।
दुगुना रूप दिखाकर मच्छर रूप लिया झट धार है ॥
गये सिर्फ बूटी लाने को, लाये शैल उखाड़ के ।
क्या अन्दाज करे कोई तेरे बल की नहीं शुमार है ॥
कहा राम ओ हनुमत तूने उपकार किया है मेरा ।
बदला क्या दूँ पवनसुत कर्जदार हूं तेरा मुझपर भार है ॥
मुश्किल अब आसान है तुम हो भक्त रुद्र अवतारी ।
महिमा प्रबल जगत ने देखी, हे बजरंगी जयकार जयकार है ॥
बिप्र बने कहीं किये छल बल रूप धरे घनेरे ।
किये काज हर जगह तुम्हीं तो धन्य राम के चेरे हो बलिहार है ।।
श्री मारूत नन्दन कृपा करो अब दया दृष्टि कर दीजै ।
शिव प्रसाद जन को चरण रख लीजै तो बेड़ा पार है ।।